हिमांशुअस्थाना,वाराणसी:
हिदीकवितामेंछायावादयुगकेप्रवर्तकऔरअप्रतिममहाकाव्य'कामायनी'केमहानरचनाकारमहाकविजयशंकरप्रसादकोसाहित्यमेंहिमालयकीतरहस्थानप्राप्तहै।उनकेकाव्यसाहित्यऔरनाटकोंकीतोखूबचर्चाहोतीहैलेकिनतथ्ययहभीहैकिउनकीहीकहानियोंसेहिदीमेंआधुनिकलेखनकासूत्रपातहुआ।
प्रसादजीकीपुरस्कार,गुंडा,घीसू,प्रतिध्वनि,आकाशदीप,आंधी,इंद्रजाल,उर्वशी,प्रलयऔरअंतिमकहानीसालवतीआजभीबिल्कुलवैसीहीताजगीसेलबरेजऔरज्वलंतलगतीहैं।विशेषज्ञइसकेपीछेउनकेउतार-चढ़ावभरेव्यक्तिगतजीवनऔरबनारसीजीवनशैलीकोमूलप्रेरणामानतेहैं।सातवींकक्षामेंजबवेबनारसकेक्वींसकालेजमेंपढ़ाईकररहेथे,तभीपिताकादेहांतहोजानेसेउनकाएकेडमिकजीवनसेनाताटूटगया।तीनवर्षबादमाता,फिरभाईऔरपत्नीकेनिधननेउन्हेंपूरीतरहसेझकझोरदिया।चौककेनिकटनारियलबाजारस्थितसुंघनीकीदुकानचलानेकीजिम्मेदारीउनपरआगई।कहाजाताहै,दुकानपरहीबैठे-बैठेवहरद्दीकागजकेपन्नोंपरकविताकेरूपमेंअपनीभावनाओंकोशब्ददेनेलगे।बादमेंजीवनपर्यतउन्होंनेयहींसेहिदीसाहित्यकीसेवाकी।उनकायोगदानमहानसाबितहुआ।हिन्दीसाहित्यकेइतिहासमेंउनजैसाकोईदूसराव्यक्तित्वनहींदर्जहै।
जानकारबतातेहैंकिप्रसादअपनेअंतिमसमयमेंजबगंभीररूपसेबीमारथे,तोस्वास्थ्य-लाभकेलिएबनारससेबाहरजाकरप्रवासकरनेकीचिकित्सकीयसलाहदीगईलेकिनउन्होंनेकाशीकोछोड़नास्वीकारनहींकिया।15नवंबर,1937को48वर्षकीअल्पायुमेंहीउन्होंनेअतिमसांसली।प्रसादजीरहेजागरणपाक्षिकपत्रकेसंपादक
प्रसादजीपरजीवंतसंस्मरणलिखनेवालेउनकेनिकटस्थविनोदशंकरव्यासकीपुस्तककेअनुसारफरवरी1929मेंबनारसकेपुस्तकमंदिरसेजागरणपाक्षिकपत्रकाप्रथमअंकशुरूहुआ।संपादनकरनेवालेप्रसादजीनेहीइसकानामकरणकियाथा।इसीमेंउन्होंनेलिखाथाकिअपवित्रता,असतऔरदुष्चरित्रकलाकाउद्देश्यनहींहोनाचाहिए।बादमेंइसपत्रकासंपादनमुंशीप्रेमचंदनेकिया।बुद्धिपरस्थापितकीह्दयकीसत्ता:
आचार्यरामचंद्रशुक्लकीपौत्रीवसाहित्यकारडा.मुक्ताकेअनुसारअपनीकहानियोंमेंप्रसादजीकाफीमुखररहे।उन्होंने'ममता'और'घीसू'कहानियोंमेंमहिलाओंकीस्थितिसेलोगोंकेदिलोंकोझकझोरा।उनकीऐसीकहानियांआजभीप्रासंगिकहैं।बीएचयूमेंहिदीविभागकेप्रो.सत्यपालशर्माकेअनुसार'कामायनी'मेंउन्होंनेबुद्धिकेसाथहृदयकेसामंजस्यपरजोरदियाऔरहृदयकीसत्तास्थापितकी।बीसवींसदीमेंमनुष्यजिससंवेदनाकेविच्छेदकाशिकारहोरहा,उसेप्रसादजीनेअपनेसाहित्यसेभरसकदूरकरनेकाप्रयासकिया।किसीभीपत्र-पत्रिकासेनहींलेतेथेपैसे:प्रसादजीनेअपनेसाहित्यिकजीवनमेंकिसीभीपत्र-पत्रिकासेपुरस्कारस्वरूपमिलेधनकोस्वीकारनहींकिया।हिदुस्तानीएकेडमीसे500औरनागरीप्रचारिणीसे200रुपयेकीराशिमिलीथी,उन्होंनेवहसबनागरीप्रचारिणीकोसौंपदी।इसकेअलावाउन्होंनेकिसीकविसम्मेलनमेंकाव्यपाठकरनायाकिसीसभाकासभापतिहोनास्वीकारनहींकिया।1933मेंपहलीबारआचार्यशुक्ल,प्रसादवप्रेमचंदआएएकसाथ:1933मेंपहलीबारबनारसमेंहुईऐतिहासिकबैठकमेंजवाहरलालनेहरू,कमलानेहरू,संपूर्णानंद,आचार्यरामचंद्रशुक्ल,मुंशीप्रेमचंदऔरजयशंकरप्रसादएकसाथमिले।इससभामेंनेहरूजीनेकहाथाकिहिदीकोभीबांग्लाभाषाकीतरहसेसमृद्धिकेलिएअभीऔरकार्यकरनापड़ेगा।इसपरबादमेंसूर्यकांतत्रिपाठीनिरालानेलिखाकिजिससभाकेसाक्षीआचार्यशुक्ल,मुंशीजीऔरप्रसादरहेहों,वहांपरहिदीकेलिएऐसेबोलव्यावहारिकनहीं।
मुंशीप्रेमचंदऔरप्रसादजीकेलेखन-दृष्टिकोणोंमेंभलेहीअंतररहे,लेकिनदोनोंकेबीचव्यक्तिगतसंबंधअत्यंतसौहार्द्रपूर्णरहे।
प्रसादने'कंकाल'उपन्यासलिखातोप्रेमचंदउननेआत्मीयरूपसेजुड़गएथे।उन्होंनेअपनेजीवनमेंजोभीक्षणजिया,उसेसाहित्यकारूपदिया।बनारसकीरहन-सहनऔरजीवनशैलीकोसबसेबेहतरउन्होंनेहीचित्रितकियाहै।उनकेसिद्धांतशैव-दर्शनसेजुड़ेहुएथे,जिसकेआधारपरउन्होंने'कामायनी'कीरचनाकी।देशप्रेमकेचरमरूपऔरराजनीतिकेदांव-पेचउनकेनाटकोंमेंदेखनेकोमिलतेहैं।उन्होंनेअपनेअंतसमयमेंफिल्मनिर्माणमेंभीरुचिली,लेकिनवहपूर्णनहोसका।
-प्रो.ओपीसिंहअध्यक्षभारतीयभाषाकेंद्र,
जेएनयूनईदिल्ली