रासेश्वरी राधारानी के जन्म की घड़ी से पूर्व रात दो बजे लाड़ली मंदिर पर जन्मोत्सव की बधाई का गायन किया गया। दाई, मान, सवासनी, नाइन, नामकरण लीलाओं के पदों का गायन किया गया। सुबह चार बजे से मंदिर के गर्भ गृह में घंटे- घड़ियाल बजने लगे। यह रासेश्वरी के जन्म लेने का संकेत था। जन्म के साथ ब्रजाचार्य नारायन भट्ट द्वारा प्रकट राधारानी के विग्रह को अष्टदल कमल चांदी की चौकी पर विराजमान किया गया। मूल नक्षत्र में जन्मी राधारानी का मंगलवार को सुबह चार बजे से लगातार सवा घंटा अभिषेक चला। इस पल को निहारने के लिए भक्तों ने पलकों को झपकने नहीं दिया। दूध, दही, शहद, गाय का घी, इत्र, बूरा, 27 पेड़ों की पत्ती, 27 जगह की रज, 27 कुंओं का जल, सप्त अनाज, सात मेवा, सात फल से बारी-बारी से बृषभानु नंदनी के विग्रह का अभिषेक किया गया। आचार्यों ने वेद मंत्रों के साथ नवग्रह देवताओं का आह्वान किया। राधारानी को कालिदी सहित सात नदियों के जल से भी स्नान कराया गया। अभिषेक के बाद महारानी को पीले रंग की पोशाक धारण कराई गई। सेवायतों ने युगल स्वरूप की आरती उतारी। सुबह करीब आठ बजे राधारानी ने शीश महल से भक्तों को दर्शन दिए। कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति के धराधाम पर अवतरित होने की खुशी में नंदगांव से बधाई लेकर पहुंचे लोग बृषभानोत्सव में जमकर थिरके। महल से निकल सफेद छतरी में दिए दर्शन: राधारानी के दर्शनों की लालसा में जुटे जन समूह को दर्शन देने के लिए मां कीरत रानी गोद में लाड़ली को लेकर बाहर आ जाती हैं। गोस्वामी समाज द्वारा शाम की बेला में इस परंपरा को निभाया गया। शाम करीब साढ़े पांच बजे राधारानी को डोले में विराजमान कर गर्भगृह से नीचे संगमरमर की सफेद छतरी में लाया गया। लाड़ली के दर्शन को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। छतरी में विराजमान होकर लाड़ली भक्तों पर कृपा बरसाती रहीं। बृषभानु नंदनी साल में तीन बार (राधाष्टमी, हरियाली तीज व धुलैंड़ी के दिन) भक्तों को नजदीक से दर्शन देने के लिए सफेद छतरी में आती हैं। शाम करीब सात बजे गोस्वामी समाज की कुंवारी कन्या द्वारा संध्या आरती की जगह आरता किया गया। इसके बाद राधा रानी को वापस गर्भगृह में विराजमान किया गया।
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